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एनपीके उर्वरक

गाय के गोबर से किसानों की आमदनी बढ़ाने के लिए मोदी सरकार ने उठाया कदम

गाय के गोबर से किसानों की आमदनी बढ़ाने के लिए मोदी सरकार ने उठाया कदम

नई दिल्ली। केन्द्र की मोदी सरकार लगातार किसानों की आमदनी बढ़ाने के लिए नए नए प्रयोग कर रही है। अब मोदी सरकार ने एक महत्वपूर्ण योजना बनाई है। 

योजना के तहत गाय के गोबर को बायोगैस के रूप में प्रयोग किया जाएगा, जिससे किसानों की आमदनी बढ़ेगी। पूरे भारत वर्ष में तकरीबन 30 करोड़ मवेशी हैं और घरेलू गैस की लगभग 50 फीसदी आवश्यकता, गाय के गोबर (Cow Dung) से बनी बायोगैस से पूरी हो सकती है। 

इनमें कुछ हिस्सा एनपीके उर्वरक (NPK - Nitrogen, Phosphorus and Potassium) में बदला जा सकता है। उधर सरकार की प्राथमिकता के अनुरूप गाय के गोबर के मुद्रीकरण से डेयरी किसानों की आमदनी बढ़ाने की संभावनाएं बढ़ेंगी।

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सरकार ने डेयरी किसानों की आय बढ़ाने के लिए राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड (एनडीडीबी) की एक नई सहायक कंपनी एनडीडीबी मृदा लिमिटेड (NDDB MRIDA) का शुभारंभ किया है, जिसके तहत केंद्रीय मत्स्य पालन, पशुपालन और डेयरी मंत्रालय को एक वैधानिक स्थान मिलेगा। 

दूध, डेयरी उत्पाद, खाद्य तेल और फलों व सब्जियों का निर्माण, विपणन और बिक्री करने वाले किसानों को इसका फायदा मिलेगा। 

केंद्रीय मत्स्य पालन, पशुपालन और डेयरी मंत्री, श्री पुरुषोत्तम रूपाला ने खाद प्रबंधन के लिए एनडीडीबी की सहायक कंपनी एनडीडीबी एमआरआईडीए लिमिटेड का लोकार्पण किया - इस प्रेस रिलीज़ (Press Release) का पूरा दस्तावेज पढ़ने के लिए, यहां क्लिक करें

कैसे बनेगी गाय के गोबर से बायोगैस

गाय के गोबर से बायोगैस बनाने के लिए सबसे पहले पशुओं से प्रतिदिन उपलब्ध गोबर को इकट्ठा करना होता है, जो गोबर की मात्रा तथा गैस की संभावित खपत के आधार पर होगा। 

सरल तरीके से माना जाए तो, संयंत्र में एक घन मीटर बायोगैस प्राप्त करने के लिए गोबर 25 किग्रा प्रति घन मीटर क्षमता के हिसाब से प्रतिदिन डालना जरूरी है, जिसका औसत प्रति पशु और प्रतिदिन के हिसाब से डालना चाहिए।

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बायोगैस बनाने में कितना समय लगेगा

बायोगैस प्लांट (Biogas Plant) या गोबर गैस प्लांट लगवाने के लिए आपको सबसे पहले कृषि विभाग में आवेदन पत्र दाखिल करना चाहिए। इसके बाद कृषि विभाग अपनी टीम भेजकर अच्छा प्लांट तैयार करेंगे। 

करीब 5 से 7 दिन के अंदर यह प्लांट तैयार हो जाता है। इसके बाद इसमें 50 फीसदी गोबर और 50 फीसदी पानी भरा जाता है। कुछ समय बाद ही इसमें बैक्टीरिया एक्टिव हो जाते हैं और ऑक्सीजन के अभाव में मीथेन (Methane) गैस बनना शुरू हो जाती है।

इस राज्य में उर्वरकों का पर्याप्त मात्रा में हुआ भंडारण, किसानों को चिंतित होने की कोई जरूरत नहीं

इस राज्य में उर्वरकों का पर्याप्त मात्रा में हुआ भंडारण, किसानों को चिंतित होने की कोई जरूरत नहीं

उत्तर प्रदेश में विगत साल 2022 में उर्वरक की खपत में काफी देखने को मिली थी। साथ ही, इस साल प्रदेश सरकार पहले ही बड़ा कदम उठा रही है। उर्वरकों का अभी से भंडारण करना शुरू कर दिया है। रबी सीजन की फसलें काटकर किसान बेचने के लिए मंडी पहुँचाने लगे हैं। गेहूं से भारत के विभिन्न राज्यों में मंडियां भरी पड़ी हैं। किसानों ने रबी सीजन की फसलें काट ली हैं। उन्होंने नए सीजन की फसलों की बुआई की तैयारी शुरू कर दी है। जिस तरह अच्छी फसल पाने के लिए अच्छे बीज का होना जरूरी है। इस प्रकार उर्वरक भी खेत के लिए समान उपयोगी है। रबी सीजन में उत्तर प्रदेश में उर्वरक संकट गहरा गया था। पूर्वांचल में किसानों को डीएपी, यूरिया प्राप्त करने के लिए इधर उधर चक्कर काटना पड़ता था। परंतु, इस वर्ष किसानों के समक्ष यह संकट नहीं उत्पन्न होने वाला है। इस बार प्रदेश सरकार द्वारा संपूर्ण तैयारी कर ली गई है।

साल 2022 में धान, यूरिया की कितनी खपत हुई

किसी भी फसल के उत्पादन को बढ़ाने के लिए फर्टिलाइजर का इस्तेमाल किया जाता है। साल 2022 में उत्तर प्रदेश में उर्वरक की खपत काफी ज्यादा हुई थी। प्रदेश के किसानों ने निजी खेत में 37 लाख मीट्रिक टन यूरिया एवं 8.5 लाख मीट्रिक टन डीएपी लगाया। ज्यादा डीएपी और यूरिया का उपयोग होने के कारण प्रदेश में इसकी कमी हो गई थी। परंतु, वर्तमान में प्रदेश सरकार अभी से इसका भंडारण करने में लग गई है।

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यूरिया और डीएपी का कितना भंडारण हुआ है

मीडिया खबरों के मुताबिक, उत्तर प्रदेश सरकार की तरफ से 13.24 लाख मीट्रिक टन यूरिया के साथ 3.28 लाख मीट्रिक टन डीएपी का भंडारण कर लिया गया है। प्रदेश सरकार के अधिकारियों के बताने के मुताबिक, साल 2022 में किसानों ने यूरिया एवं डीएपी की खपत खूब हुई थी। परंतु, इस बार संपूर्ण हालत को देखते हुए पूर्व से ही बंदोवस्त कर लिया है।

डीएपी, यूरिया की खेत में कितनी आवश्यकता है

एक रिपोर्ट के मुताबिक, खेतों में डीएपी का इस्तेमाल करने के लिए मानक तय हैं। बतादें कि धान में प्रति एकड़ 110 किलोग्राम यूरिया की खपत हो जाती है। डीएपी की 52 किलोग्राम तक खपत हो जाती है। इसके साथ-साथ 40 किलोग्राम पोटाश का भी इस्तेमाल किया जाता है। दरअसल, उर्वरकों के उपयोग की मात्रा तक भी तय है। किसान के द्वारा निर्धारित मात्रा में उर्वरकों के इस्तेमाल से अच्छी पैदावार भी अर्जित की जा सकती है।